अज्योध्या बाई एक एसी महिला जो अपनों के होते हुये दर दर की ठोकरें खाकर सड़क के किनारे जीवन काट रही है।
भारत जैसे देश में चाहें हम चांद पर पहुंच जायें या फिर बुलेट ट्रेन ही
क्यों ना चला दें करोड़ों लोग ऐसे है जो आज भी मुंह में निवालें और सर पर
छत मिलने की आश में जी रहें है। जबाब देही यात्रा में ऐसे कई दर्द भरी
कहानियां और कष्ट सामने आ रहें है। लगता है, देश आजाद नही सिर्फ आजादी नाम का एक शब्द मिला है जिसे सिर्फ बड़े बड़े धन्ना सेठ और सफेदपोश पढ़ पातें है।
ये कहानी है अज्योध्या बाई पत्नी स्वर्गीय चम्पक सिंह गहलोत उम्र 70 वर्ष ग्राम बीड़वास बड़ी तहसील कुशलगढ़ जिला बांसवाड़ा राजस्थान।अज्योध्या बाई के पति गुजरात में रेल कारखाने में काम करते थे चम्पक सिंह की पहली पत्नी की मृत्यु हुई तो उन्होने दूसरी शादी अज्योध्या बाई से की पहली पत्नी का एक बेटा है सोभन सिंह तथा अज्योध्या बाई के बेटे का नाम अमर सिंह दोनों बेटे पिछले कई सालों से लापता है। पति की मृत्यू गुजरात सरकार द्वारा जारी किये गये मृत्यू प्रमाण पत्र के अनुसार 33 वर्ष पूर्व हो गई थी यानि आज इस महिला का अपनें परिवार का कोई सदस्य नही है। सर्वगीय चंपक सिंह के नाम काफी जमीन थी पति की मृत्यू के बाद अज्योध्या बाई के नाम भूमि हकदारी दर्ज नही हुई। पढ़ीलिखी ना होने के कारण इन्हें सरकारी झमेंलों की जानकारी भी नही है।
पति की मृत्यू कि बाद ये आंगन बाड़ी में सहायिका की नौकरी पास के राज्य मध्यप्रदेश में करने लगी 60 साल की उम्र होने के बाद वहा से भी हटा दिया। वापिस आपने गांव आयी तो देवर वालचंद व उसके बेटे जवान सिंह ने कब्जा कर लिया और अज्योध्या बाई को कहा कि तुम हमारे साथ रहों हम तुम्हारा भरण पोषण करेंगे। लेकिन कुछ ही समय बाद उसके साथ मार पीट, गाली गलौच होनी लगी और फिर घर से निकाल दिया गया आज यह महिला सड़क के किनारे छप्पर के नीचे जिंदगी काट रही है।
शासन प्रशासन की अंधेर गर्दी देखियें किे एक खसरा खतौनी की नकल निकालने के लिए पटवारी को 500 सौ रूपय रिस्वात देनी पड़ती है और इस महिला को राजस्व विभाग के कर्मचारी कहते है कि अगर जमीन अपने नाम करवानी है तो 40000 हजार रूपय लगेंगे। तो ये महिला क्या करें। या तो मरें या फिर लोंगो के टुकड़ों पर जीने को मजबूर हो ऐसा भी नही कि इस महिला के पास सरकारी दस्ताबेज नही है उनके पास बैंक की पास बुक है राशन कार्ड है, आधार कार्ड है 2 महीने विधवा पेशन मिली है साथ ही जमीन को जो लगान जमा किया गया वो भी अज्योध्या बाई के नाम से आया सभी दस्ताबेजों में पति का नाम चम्पक सिंह दर्ज है लेकिन फिर भी जमीन का हक अज्योध्या बाई को नही मिल पाया। देवर व देवर के लड़के ने मार पीट की तो पुलिस में प्राथिमिकी दर्ज करवाई वहा से भी निराशा हाथ लगी कोई कार्यवाही नही हुई। पेंशन 2 महीने मिली वो भी बंद हो गई। अज्योध्या बाई हार्ट की गम्भीर बीमारी से भी पीड़ित है सरकारी आस्पताल से इलाज चल रहा है हालत ये है कि गाड़ी पर जाने के लिए 10 रूपय किराया तक नही पेट भरने के लिए गांव वाले खाना देते है।
तो फिर यही सवाल उठता है कि किसके लिए है विकास धन्ना सेठों और सफेदपोशों के लिए या फिर इस तरह की लाचार जिंदगी के लिए ?
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